...

16 Reads

// #प्रकृति_प्रेम_रीत //

खिला - खिला नव भोर नील- गगन,
ताक रहे विस्मृत से दो भावुक नयन;
खुला -खुला हुआ भावुक भारी मन,
चिंता - विंता चली छोड़ के चितवन।

पग- पग पर निर्मल- रेत नर्म- स्पर्श,
शीतल - पवन स्पंदन ह्रदय देत हर्ष;
लहर लहर सागर का निरन्तर संघर्ष,
पंछी फैला पंख सुर गाएं गीत सहर्ष।

डाल-डाल पर भंवरे का गुंजन गीत,
पुष्प -पुष्प पर तितली के प्रेम प्रीत;
प्रकृति अद्भुत रमणीय निश्चल प्रेमरीत,
निश्चल- स्नेह - मिलन जीवन सीख।