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कतरा के ज़िंदगी से गुज़र जाऊँ क्या करूँ,
रुस्वाइयों के ख़ौफ़ से मर जाऊँ क्या करूँ...
मैं क्या करूँ कि तेरी अना को सुकूँ मिले,
गिर जाऊँ टूट जाऊँ बिखर जाऊँ क्या करूँ...
कल को छोड जाउगा दुनिया
आज जो थोड़ा-बहुत चुभ सा रहा हू
लेकिन कल याद करोगे
जो आज खटक सा रहा हू
कोई कितना भी अजीज हो
जाने के बाद, धीरे-धीरे,
सब भूल ही जाते है,,,
शायद यही दस्तूर है दुनिया का
और मै इस दुनिया से अलग कहां?
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