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बाहरी सुंदरता केवल भ्रम है वो व्यर्थ भ्रमित करके यहां-वहां भटकाती है, जो वक़्त के साथ कुम्हला कर सिकुड़ जाती है ।
इसलिए हृदय की भीतरी अच्छाई तलाशिए जो शाश्वत निरंतर सुगंध देती हैं । जिनमें स्नेह, संवेदना, करुणा, अहिंसा, क्षमा जैसे भाव उत्पन्न होते हैं । जिसकी तुलना में चेहरे तो केवल आकर्षण का माध्यम है, जिस पर चंचल मन का प्रभाव दिखने मिलता है । लेकिन ये मनुष्य की कैसी चेष्टा है हर कोई यहां सुंदरता के पीछे दौड़ लगा रहा है, वास्तविक रूप, रंग, कद-काठी, आकर छुपाकर एडिटिंग, क्रोप, करके इमेज़ या व्यक्तिव को बनावटी आवरण के नीचे ढंग कर नेचरली सादगी, शृंगार को छिपाकर खुद को बेहतर दिखाने पर तुले है । शायद यह सायकोलॉजी इफेक्ट है जो मन-मस्तिष्क पर अतिक्रमण करतीं हैं । जिस पर आपका नियंत्रण नहीं है, बस यह झूठे भावनाओं का खुल्लमखुल्ला व्यापार है, जिसमें दिखावट, सजावट, बनावट जैसा विचारधारा प्रवाह बहता रहता है,
उसमें सही ग़लत मायने नहीं रखता, बस आपके विचारों का प्रभाव मायने रखता है । जिसमें स्वार्थ, महत्वाकांक्षा का आधिपत्य बढ़ता रहता है, इसलिए यह जरूरी नहीं है कि आप कैसे दिखते है बल्कि यह जरूरी है कि आप क्या सोचते है, आपकी काबिलियत क्या है ? जो दूसरों से आपको भिन्न बनाती है । इसलिए सुंदरता बाहर भी है, अंदर भी है और आपके विचारों में भी सुंदरता है अपितु आप किसी सुंदरता का चुनाव करते हैं वो आपकी अभिरुचि पर निर्भर करता है ।