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मैं जुगनू हाथ में ले प्यासा प्यासा फिरता हूं
में कैक्टस के फूल जैसा जिंदा हूं

मना लें आंधियों अब ईद, ढा ढा के मुझको
मैं पर मेहनत के मंदिर का चमकता हिस्सा हूं

कलम टूटी, जड़ें टूटी , नहीं पर मिटता हूं
मैं वो पौधा हूं सूखे पत्तों से भी उगता हूं

ना कल में जीता हूं, ना कल से डरता हूं मैं अब
तवा डोसे का ले, गर्मा-गरम ही बनता हूं