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" हमसे इतना भी न हुआ
गुस्ताख़ी जो उस फुल को
तोड़ने की जरूरत कर पाते
क्लीं जो हाल फिलहाल फ़किरा
बिन मौसम बरसात में खिले थे
किसी सफेद चादर में लिपटे हुए
बर्फिले उस चट्टान के आगे
जो बड़े बेवकूफी से फ़किरा
अपनी प्यास को बुझाने के खातिर
उनके दिल को पिघलाने निकले थे
जो सिर्फ रेत कंकड़ और सीमेंट
मोहब्बत ऐ मिलावटी मसाले
पत्थर ऐ पतझड़ के बने हुए थे
जो सावन में भी झर जाते थे
हमसे इतना भी न हुआ फ़किरा
उस कली को तोड़ पाते जो फुल
बड़े नाजुक किसी नमाज़ की तरह
पाक ऐ पवित्र जो माली फ़रिश्ते
_______के हाथों पालें-पोसे गए थे !"