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#तेराहोना
गुजरी शाम की बात ही अलग थी
मन की बात जुबान पर आयी थी
वैसे तो हमें राज ही उसे रखना था
पर वस्तुस्थिति बतानी ज़रूरी थी

तेरी सादगी का मै कायल हुआ था
तुमसे बातें करने का मन होता था
तेरे ख़यालों में खोने का मन होता था
तेरी हर हरकतों से मन बाग बाग होता था

तुझपर कविता मै लिखता गया
तेरे हुस्न के कसिदे मै पढता गया
तुझपे कब दिल आया पता नहीं
तेरी चाहत में मै दिवाना होता गया

मुझे पता है हमारी भी एक हद है
हक़ीक़त को स्वीकार करना होगा जो सच है
पर इसका ये अर्थ नहीं के हम तुम्हें ना चाहें
हमारी चाहत के हक को हमसे ना छिना जाये

विवेक पर चाहत का असर लाजमी है
गलत और सही का आकलन बेमानी है
तुम भलेही हिसाब किताब लगाते रहना
जो तुम्हारे हितों का है वहीं तुम सोचना

हम तो बस इतनी सी कामना करते हैं
तुम्हारे अहसास में जीना चाहते हैं
माँगा नहीं कभी ईश्वर से मेरे मन का
झोली फैलाकर ये अधिकार तुमसे मांगते है

तुम हमें चाहो ना चाहो कोई बात नहीं
जैसी तुम्हारी मर्ज़ी तो वहीं सहीं
पर मुझसे मेरा अधिकार ना छिनना
प्रित के तराने को गुनगुनाने मना ना करना
तुम्हारी चाहत में कविताएँ मुझे लिखने देना