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ऐ ज़िंदगी तू क्यों इतनी हैरान है
क्यों हर ग़म से तू मेरे होती वाक़िफ़ नहीं
बहुत हो चुका तेरा ये खेल आँख मिचौनीं का
खेल चुकी तू बार बार मेरी जज़्बातों से
बस कर तू मुझे यूँ सतना
ऐ ज़िंदगी …….
पास आ एक बार तू मुझे गले से लगा
एक मुझे तू आपना बना
पास आ ऐ ज़िंदगी …..
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