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प्रीत की डोर फेकी थी तुमने थामी नहीं,
मेरी मजबूरियां जानकर भी तुम जानी नहीं,
मैं दर्द में तड़पता रहा, इश्क करता रहा,
तुमने घर में न बताया किसी ने जानी नहीं!

अब जब बिछड़े तो जाकर पता ये चला,
पास मेरे अब तो तेरी कोई निशानी नही॥
सोचा संजो लूंगा मुहब्बत की कुछ यादें हमारी,
पर अब तो मुहब्बत की कोई कहानी नहीं॥


करी है जो इश्क करके खताये मैने,
शायद इन गुनाहों की कोई माफी नहीं॥
ताउम्र तो गुजार ली इश्क में मगर अब,
लग रहा इश्क के लिए इक उम्र काफी नही॥

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