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जित जाऊं उत माटी बीज लगाऊं,
विनय करुणा स्नेह सुमन उपजाऊं;
सूनी धरा प्रीत- प्रेम के रंग सजाऊं,
पावन पवन संग सुर - राग लड़ाऊं।
हिमाद्रि से ले आना धारा गंगाजल,
सागर से स्वप्न सजाना भूमि आंचल
गगन चाँद तारे जडना धरा पायल,
इंतज़ार में बैठी खोल पट सांकल।
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