...

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तेरी उम्मीद-ए-वफा-ए-इश्क़ पर
लगा बैठा हूँ दाव अपने वजूद का..
सुन! अब और तमाशा न बना
मेरी खाक़ तक अब मेरी नहीं रही..

© Gaurav Udawat