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शहर के गलियों में खोया है वो,
खुद से ही दूर, मैं अपना कोई ढूंढ रही हूँ
धुंधली रोशनी में बेख़ुदी की तलाश,
अजनबी राहों पे, मैं कोई अपना ढूंढ रही हूँ ।
दिल की धड़कनों में, टूटी है उम्मीदें,
ख्वाबों की उड़ान में, मैं कोई सपना ढूंढ रही हूँ
मुट्ठी में रेत की तरह फिसलते हैं पल,
तपते हुए सेहरा में, मैं ओस की बूंद ढूंढ रही हूँ
हर चेहरे में झलकता है परायापन,
दुनियां की भीड़ में, मैं अपना सा दीवाना ढूंढ रही हूँ
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