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** बचपन के लम्हे**

वो बचपन के लम्हे, वो प्यारी सी बातें,
न भूली हैं अब तक, वो यादें सुहानी।

वो अम्बर का छूना, परिंदों सा उड़ना,
जैसे सपनों की गलियों में मनमानी।

मिट्टी के घरौंदे, वो सखियों के संग,
न था कोई चिंता, न फिक्रें जवानी।

वो गुड़ियों की शादी, खेलों की रौनक,
हर पल था जादू, हर लम्हा था पानी।

माँ की वो कहानियाँ, दादी का प्यार,
नहीं मिलती अब वैसी, मीठी जुबानी।

कंक्रीटों के शहर में, हम खो से गए हैं,
वो बचपन के लम्हे, वो मासूम नादानी।

अब लौटें न लौटें, वो बीते पल प्यारे,
पर दिल में बसी हैं, वो यादें पुरानी।