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// #कलयुग //

जीवन ईश्वर का रचा- रंगमंच,
ज़िन्दगी जगत बिछी शतरंज;
जबसे जगत मन समाया रंज,
चरु दिशा मानव लड़ रहे जंग।

तमस घिरा विचारों से अपंग,
बाहर मौन अंदर ध्वनि दबंग;
क्षण क्षण ज़िन्दगी करत दंग,
चहुंदिशा भीड़ स्वयं में मलंग।

मानव मन मोह माया परतंत्र,
कैसे बन गया जीवन का मंत्र;
क्या यही कलयुग पंचांग तंत्र,
पग पग तड़पे मानवता अपंग।

स्नेह प्रेम करुणा तरुवर सूखे,
ह्रदय
नीड़ छोड़ उड़ प्रेम- पंछी रुठे;
मन सुखपल सूखे पात से टूटे,
जन मन नित नव षडयंत्र गूंथे।