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आज दिल का मेरे चिराग़ बुझा
दूर घर से मेरे उजाला हुआ
हार दिल है गया पुकार उसे
कर दिये सब है दरकिनार मुझे
कोई सुनता नहीं है मेरी सदा
दर्द दिल का न होता कम है मेरा
पास कोई नहीं तबीब मेरा
मर्ज़ की मेरे है बनी न दवा
वक़्त मेरा ख़राब चल है रहा
पाँव में खार मेरे चुभ है रहा
हाय मरहम नहीं कोई भी मिला
जितेन्द्र नाथ श्रीवास्तव "जीत "
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