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// #चिंतन_गांव_चली_नांव //

वो सब सो गये थे ढलते ही सांझ,
प्रभात पर जाग उठा चिंतन गांव;
फ़िर चल पड़ी विचारों की नाँव,
चले जा रही पवन संग पांव पांव।

दिशा बदल चले निरंतर शांतराग,
आशाएं उल्टे पलटे एकांत भाव;
चित- चितवन कोमलता से साध,
अंतर्मन- निरन्तर स्वयं से संवाद।

तर्क की कसोटी पर खरा वाद,
अक्सर नहीं देता अच्छा स्वाद;
सुर्जन से तर्क सकारात्मक वाद,
दुर्जन तर्क- कुतर्क करेगा विवाद।

सुन सबकी कह दूजन मन बात,
पूरी करले अपने मन की सौगात;
मत बन जग जीवन का अपवाद,
न वक्त सुनन करन को तर्क वाद,
सबकी अपनी ढपली अपने राग।