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" कुछ गुमान लिये फिर रहे हो आंखों में ,
कोई हंसी मजाक हैं क्या जो कहना साफ साफ कहना ,
इस कदर कभी कही भी अभी मैंने दिल लगाया नहीं ."
जो जुबान हैं आंखों का ज़रा हाले ए दिल साफ साफ कहना . "

--- रबिन्द्र राम

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