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मैं मायूसियों से इतर अब मुस्कुराना चाहता हूँ
दर्द–ओ–ग़म को अपने दूर भगाना चाहता हूँ
चाहता हूँ कि मैं चश्म_ए–बीनाई से रंग नुमायाँ हों
मैं हर–इक नज़ारे को ख़ुद ही नज़राना चाहता हूँ
बहुत से एहसासात हैं जो बे-ख़ुद किए देते हैं मुझे
सुनना चाहे गर कोई तो मैं भी सुनाना चाहता हूँ
बातें बनाते हैं लोग मेरे किरदार के मुताल्लिक़ जो
क्या-क्या नज़रिया रखता हूँ उन्हें बताना चाहता हूँ
एक मुद्दत से दबा रहा हूँ ख़ामोशियों की आवाज़ें
बहुत हुआ अब मैं सर-ए-राह चिल्लाना चाहता हूँ
कभी अयाँ नहीं कर पाया मुहब्बत अपने वालिद से
कितनी मुहब्बत है गले लग उन्हें जताना चाहता हूँ
ये चाहत, ये नफ़रत, ये बुग़्ज़-ओ-अदावत के नख़रे
मरने पर नहीं रहता कुछ सो मैं मर जाना चाहता हूँ
शामिल हैं मेरे अपने भी मुझे नीचा दिखाने में ‘हैदर’
खुशियाँ प्यारी हैं उनकी तो मैं गिर जाना चाहता हूँ