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// #उत्कल_सागर //

सागर उत्कल- लहरों सा उत्कर्ष चित्तवन चेतन,
चित्त निरंतर सुंदर सुशील विचार हिलोर स्पंदन;
अविरल कुसुमित- पुलकित सा अतल चितवन,
पंछी की मधुर - मृदुल चहक हूक सी अंतर्मन।

अंबर भोर सुहानी केसरी अवनि मंगल दृश्यम,
अयन से जन निकले देखें जीवन अद्भुत संगम;
देश उत्तर में त्रिवेणी से लेके दक्षिण में त्रिवेन्दम,
जन जात- पात भाषा पंथ रंग सभी भेद खत्म।

ह्रदय मधुर- मिलन ऐसा जैसे अग्नि और पवन,
चित मृदुल आत्मा हवनकुंड पे बैठ करत हवन;
निश्चल निश्छल स्नेह की गंगा अविरल बहे मन,
पिक मीठी वाणी तृण मन अद्भुत निर्मल स्पंदन।