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क़लम की क़सम न खाई होती,
तो क़सम कब की तोड़ देता मैं।
रोज़ गुफ़्तगू करते हुए मैं तुमसे,
फिर से दिलों को जोड़ देता मैं॥
#मानव_दास_मद✍️
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क़लम की क़सम न खाई होती,
तो क़सम कब की तोड़ देता मैं।
रोज़ गुफ़्तगू करते हुए मैं तुमसे,
फिर से दिलों को जोड़ देता मैं॥
#मानव_दास_मद✍️