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" मैं तुझसे मयस्सर हों भी तो क्या ?
अभी हमारे खसारे की बात उम्दा हैं क्या ?
मैं तुझे हासिल हों भी जाऊ तो क्या ,
फिर रकीब का ख्याल तुझपे मुरफ़्फ़ा कैसे हो जायेगा ? "

--- रबिन्द्र राम
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