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साहेब-सा-अंदाज़

वो शाम के #ख़ूबसूरत_बादल
वो रंगीन नज़ारे
वो मौसम ख़ुशनुमा
वो बनारसी बोली
वो बनारस की गलियाँ
वो कुल्हड़ की चाय
वो मेरा ज़ुकाम
और वो तुम्हारा हाल पूछना
वो नदी पर #गोते_खाती_हुई_नैया पर
बैठकर मेरा किशोर कुमार के
गाने को गाना और तुम्हारा
मुझे मंत्रमुग्ध होकर
मेरी गूंजती हुई आवाज़
को गहराई में #डूबकर_सुनना
सब पीछे कहीं छूट गया
हाँ बनारस मुझसे रूठ गया
हाँ बहुत याद आ रही है
बनारस की गलियाँ
जैसे बुला रहीं हैं
तुम्हारी सहेलियों का
वो मुझको प्यार से पुकारना
हाँ रह गया है कहीं
तेरा वो #ज़ुल्फ़ों_को_संवारना
तेरी मदमस्त बातों का असर
ऐसे लगता जैसे
शाम को किसी ने
बड़े प्यार से अपनी बाहों में
जकड़कर पूछा हो कि
क्या तुम और भी #जीना_चाहते_हो…?

बहुत कुछ रह गया
वहीं कहीं बनारस में
वो घाट
वो बात
वो तुम
वो मैं
वो #गंगा_का_पानी छलकता हुआ |

#गंगा
#बनारस
#हमतुम