...

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मत पालो ये वहम कि हम अपने बनाए जाएंगे कभी,
बेटियाँ हर घर में परायी ही होती है.....

कोई घर नही होता उनका,
मां बाप के घर में भी परायी और ससुराल में पराये घर से आयी होती है।

बचपन से लेकर बुढ़ापे तक,
हम बेटियां बस अपना घर ढूंढ रही होती है।

ये मत करो यहां अपने घर में करना,
और ये क्या कर रही हो क्या अपने घर से यही सीख कर आई हो

कहाँ करूं अपनी ख्वाहिश पूरी
अपना घर कौन सा ये ही समझ नहीं पाती है.......

बेटियों का कोई अपना घर नहीं होता,
बेटियां हर घर में परायी ही होती है............