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(विसाल-ए-यार -: प्रेमी से मिलन)

अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ।।
~राहत इंदौरी साहब


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