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मैं टूटकर बिखरा हूँ मगर समेटना चाहता नहीं कोई
पसंद करते हैं बहुत से मगर देखो अपनाता नहीं कोई

बड़ी ही कश्मकश का शिकार होता चला गया हूँ "हैदर"
दिल में होते हैं लाखों वस्वसे मगर दिखाता नहीं कोई

आज़माईश तो आती–जाती रहती हैं ज़िंदगी में यूँ तो
आजमाया गया हूँ, ऐसे किसी को आज़माता नहीं कोई

शामिल हैं साज़िश में बर्बाद करने के मेरे ये अहसास ही
लगता मर गए अब दिल में जागे अहसासाता नहीं कोई

मेरी राहों में अक्सर काँटों–ही–काँटों का गुज़र होता है
ना फूल खिलता, दिल की गली से भी गुजरता नहीं कोई

बिछड़ने वाला पहले ही चुका होता है बिछड़ने से पहले
ज़िंदगी यूंही बदस्तूर चलती है, हिज्र में मरता नहीं कोई

लगता है कभी-² ज़िंदगी ठहर गई ठुकराए जाने के बाद
अफसोस करते हैं यूँ मगर वक्त को रोक पाता नहीं कोई

मैं टूटकर बिखरा हूँ मगर समेटना चाहता नहीं कोई
पसंद करते हैं बहुत से मगर देखो अपनाता नहीं कोई

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