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इन्सान सोच की अपनी - अपनी सिमांए,
सम्बन्धों के अपने बन्धन अपनी बाधाएं;
सबकी समझ का अपना - अपना दायरा,
ज़िन्दगी मेरी ना खेल मैदान ना मुशायरा।
सबकी अपनी समस्याएं अपने अनुभव,
सबका अपना कर्म और अपना प्रारब्ध;
सबकी अपनी प्रस्थिति ज्ञान और स्थिति,
सबके अपने परिश्रम अपनी वास्तुस्थिति।
जग अपनी परिभाषा अपनी अभिलाषा,
जीवन झलकी बीच आशा और निराशा;
जीवन एक पल तोला अगले पल मासा,
दस पग बदला भोजन दस पग पर भाषा।