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ऐ काश देख पाते हम दूर हो रहे हैं
पर आप शोहरतों से मग़रूर हो रहे हैं
की राय एक क़ायम झूठी कहानियों से
क्यूँ कर मुग़ालते यूँ भरपूर हो रहे हैं
थोड़ा यकीं तो करते ,की थी अगर मुहब्बत
हम को ही बेवफ़ा कह ,मशहूर हो रहे हैं
थी जान जिस पे छिड़की,वो जान ले गया है
बेजान जिस्म में हम बेनूर हो रहे हैं
हमने मुख़ालफ़त तो की ही नहीं कभी दीप
क़िस्मत के फ़ैसले भी मंजूर हो रहे हैं
#दीप