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" तुझे भूलाने को अभी वक्त , जमाने और लगेंगे ,
यूं याद वेबजह शामे मुशायरों जो तुम्हें कर‌ लेते हैं ,
रक़ीब का ख़्याल की ख़्याल की गुंजाइश कुछ भी नहीं ,
बात तो हैं वेबजह पर अभी बात कुछ भी नहीं‌ ."

--- रबिन्द्र राम

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