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वो एक खत
जो मैं कभी तुम्हे भेज ही नही पाई
क्यों की संभावनाएं ही नही थी मिलने की
और मुझे बिछड़ने की स्मृतियां याद रखनी थी
आज पुराने रखे संदूक में संभाले हुए
खिलौनों जैसा ही तुम्हारा खत मिला
और बीते लम्हों की स्मृतियां वैसे ही मिली
जैसे पहली बार की तरह
मिले थे हम...!!!
__a. subhash
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