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🌼 "ऐ ख़ुदा..." 🌼

तोड़ आया हूँ, कुछ टुकड़े अपने ही नसीब का...
बिखर कर चूर है ज़माने भर का, हर ग़ुरूर मिरा!
🦋
ऐब ढंककर‌, कर दिया है ‌चाँदना से रौशन मुझे!
सर चढ़ाया कई कर्ज़ मिरे, हिसाब क्या ख़ूब तिरा!!

जीवन भर का मलाल है कि, छोड़ आया हूँ बस्ती अपनी,
है खाली झोली मगर, माँ के दुआओं से है चराग़-ए-रौशन...
🦋
है मगन अहम् में, तेरे ही बंदे हम, जाने चढ़ा क्या फ़ितूर कोई,
अकेला आया था सफ़र में, अकेला ही चल‌ पड़ा हूँ...

जिस्त रही, धरी की धरी, हाथ उठाया, चूमकर फ़र्श तिरा,
कैसी सुकूं है सफ़ैद लिबास में, माटी हूँ, धूं-धूं कर जल जाऊँगा...
🦋
फ़ैली है हिज्र-ए-रात यहाँ, उजाला कर रहा तू रौशनदानों से,
आईने दिखा-दिखा कर रहमतें, तू भी कर रहा है क्या कमाल यहांँ!!

हैरत है, उग रहे, हर्फ़-ए-रंज हर तरफ़ जहांँ में...
बेग़ैरत, सोहबत-ए-बाग़ को तरसे किस हाल में!!
🦋
रिश्तों की परत चढ़ी है, शीशे की जिंद ढंकी है,
लहू को तरसे जिस्म, फंसा हूँ किस जंजाल में।।

बिखर कर चूर है ज़माने भर का, हर ग़ुरूर...
ऐ ख़ुदा तिरे दर पर झुका है इक़-इक़ ग़ुरूर...
इक़-इक़ ग़ुरूर...

जी रहा हूँ सपनों ‌के नशेमन में, हंँसती हक़ीक़त ग़ुरबत में,
ख़ैर करे, तिलिस्म की चाभी तेरे दर पर, ऐ ख़ुदा...ऐ ख़ुदा!!!🦋

धन्यवाद!!🙏

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