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सालों से ज्यादा लोगों के चेहरे बदलते देखा है,
अफ़वाहों को हकीक़त बनते देखा है,
हरे भरे पत्तों को मुरझाते देखा है।
उम्र छोटी है तो क्या;
घड़ियों की टिक टिक सुनकर समय का अंदाज़ा लगा सकती हूं मैं ,
और क्या कहा तुमने झूठी हूं?
तो ज़रा ज़ाम का गिलास देना अपना!
इसे पीकर तेरे आसूं सूखा सकती हूं मैं।
बेश्क चेहरा मासूम और बोली लहज़े से भरी है,
पर कभी फुर्सत मिले तो देखना ;
आंखों में समदर सी गहराई
और शब्दों में मौत सी सच्चाई है।