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जब हाथ में क़लम था तो अल्फ़ाज ही न थे
जब लफ़्ज मिल गए तो मिरे हाथ कट गए

जीने का हौसला कभी मरने की आरज़ू
दिन यूँ ही धूप छाँव में अपने भी कट गए

– 'साग़र' आज़मी