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मुख़्तलिफ़ अंदाज ओ मिज़ाज हूँ मैं,
बेख़याली में खोया हुआ साज़ हूँ मैं।।

कहने वालों का क्या कुछ भी कहें,
अपने चाहने वालों का नाज़ हूँ मैं।।

कल की फ़िक्र क्यूँ मैं करूँ भला,
यही काफ़ी है मेरे लिए, आज हूँ मैं।।

सब कुछ बताता है वो रक़िब से,
उसका छुपा हुआ इक 'राज़' हूँ मैं।।

©Bharat Rajpurohit✍

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