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सच के लगे नकाब से डरती मैं
झुंठ से भि कहाँ लड़पाती हूँ मैं
अलग ढांचे में कहाँ ढल पाती हूँ मैं
गिरगिट जैसे कहाँ बदल पाती हूँ मैं
इसीलिए
जमाने के साथ चलना अब छोड़ दी हूँ मैं....
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सच के लगे नकाब से डरती मैं
झुंठ से भि कहाँ लड़पाती हूँ मैं
अलग ढांचे में कहाँ ढल पाती हूँ मैं
गिरगिट जैसे कहाँ बदल पाती हूँ मैं
इसीलिए
जमाने के साथ चलना अब छोड़ दी हूँ मैं....