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ह्रदय भावों की सघन-धारा सी फूटी,
‌कभी मन की रही मन में घुटी -घुटी;
कभी कभी चारों पहर रहे रुठी रुठी,
कभी हाथ से छूटी कभी छींके छूटी।

अभागी पल- पल रुठी पग-पग टूटी,
मगर आस कभी भी तनिक ना टूटी;
चाहे सारी दुनिया रुठी हो या छूटी,
जगत अटक खड़ी छाती गड़ी खूंटी।

प्रणय -प्रेम लता सी सर -सर फूटी,
पूर्व कटक से निकल अटक अटकी;
मन की सुंदर मणिक माला की घंटी;
सुन्दर स्वप्निल मन- मंदिर की मूर्ति।

अंबर से छूटी अवनि दर दर भटकी,
प्राणप्रिय पावन पवन सी तन सिमटी,
स्वर्ण सी चमकती वरक में लिपटी;
हिरनी सी मन वन उपवन में मटकी।