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मेरी आँखों से तेरा ग़म झलक तो नहीं गया
तुम्हें ढूंढ़ कर कहीं मैं भटक तो नहीं गया,

ये जो इतने प्यार से देखता है तू आजकल
ऐ मेरे दोस्त!कहीं तू मुझसे थक तो नहीं गया।

चेतन घणावत स.मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान