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परिस्थितियों से या ईर्ष्या से , क्योंकि जहां आदमी का उपहास उड़ाया जाता है अपने ही आस-पास के लोगों द्वारा जो की अभी अच्छे दुश्मन अर्थात् पक्के दुश्मन भी नहीं हैं परंतु दुसरी ओर उस व्यक्ति के सफ़ल होते ही अगर उसमें ईर्ष्या भाव है तो वह भी पक्के दुश्मन बन जाते हैं
वहीं दूसरी ओर प्रेम में दुश्मनी के बिलकुल विपरीत होता है क्योंकि प्रेमी के पराए होने के उपरांत वह दुश्मन भी नहीं रह जाता वह तो बस एक पराया व्यक्ति जो दोस्त भी नहीं और दुश्मन भी नहीं।
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