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" इश्क़ हैं की जनाब क्या बात करे हम,
उलफ़ते-ए-हयात नवाइस कर तो देते ,
आखिर किस दरिया में उतरते ऐसे में हम,
कुर्बत मुनासिब हो जो भी जैसा भी हो ,
फ़ुर्क़ते-ए-हयात अब जो भी हो सो हो ,
मैं तुम्हें इस मलाल से छोड़ तो नहीं देते. "
--- रबिन्द्र राम
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