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तुझमे ही बसी मेरी दुनियाँ,तुझमे ही समाया संसार है,
बेपनाह प्यार तुझसे,अब कैसे नासमझ को समझाऊ!

तेरी अनकही सी बातें रोज सीने में उफ़ान भर जाती,
उठती है कशक रोज दिल में,तुझे कैसे हाल बताऊं!

नफरतो की बीज पाल रखी है तो सच्चाई से वाक़िफ़,
कैसे होंगे मेरी शामो शहर में,इज़हार कैसे कर पाओगे!

तेरा ही हाथ थाम कर,हर पहर हॅसते हुए गुज़र जाएगा
तू मेरी छाया,तेरे बिन कैसे कठिन डगर तय कर पाऊं!

हर रोज तेरे नए नए पैतरे को देख परेशान हो जाँऊ,
जिल्लत सी जीस्त हो गईमेरी,किसे दर्द-ए-हाल सुनाऊं

तेरे दूर जाने से, डूब गई अँखियाँ आँसू के सैलाब में,
अब जो गहरे ज़ख्मो घाव है किस वैध को दिखाऊ !