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/#गुल_खिले_वहाँ/

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गुल खिलते हैं, वहाँ
दिल मिलते हैं जहाँ,
गुलिस्तां बनता वहाँ
प्रेम दिल बसता जहाँ;
मीलों की दूरी लागे
पल का फांसला,
दिल का दिल से जब
गहरा मामला।

गुल ग़ुलाब सा खिले
तृण श्यामला,
दिल धड़के तबले की
ताल सा;
जब ह्रदय आये तेरा
ख़्याल सा,
चितवन उठे एक तीव्र
भूचाल सा।

जहाँ सभी अपने भी
हो गये ग़ैर,
वहाँ भीड़ में एक बेगाना
संग गया ठहर;
कंधे से कंधा मिला खड़ा
रहा चारों पहर,
नीर मीठी धार फूट बन नदी
बही बसा एक जीवंत शहर।

सूखता सागर पूरी नदिया
पी गया,
आखिर मरता मरता फ़िर
से जी गया;
भरी भीड़ में एक अजनबी
सगा हो गया,
रोम रोम तन मन का पूर्ण
उसका हो गया।



(Pic Source- Pinterest)