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रामो विग्रहवान् धर्मः साधुः सत्य पराक्रमः।
राजा सर्वस्य लोकस्य देवानाम् इव वासवः।।
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जनकसुता जग जननि जानकी।
अतिसय प्रिय करुना निधान की।।
ताके जुग पद कमल मनावउँ।
जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।
पुनि मन बचन कर्म रघुनायक।
चरन कमल बंदउँ सब लायक।।
राजिवनयन धरें धनु सायक।
भगत बिपति भंजन सुख दायक।।
गिरा अरथ जल बीचि सम
कहिअत भिन्न न भिन्न।
बदउँ सीता राम पद
जिन्हहि परम प्रिय खिन्न।।18।।
(श्रीरामचरितमानस, बालकाण्ड