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जिस तरह लोग फायदा उठाते हैं मेरा,
कभी-कभी बहुत असमंजस में होती है जिंदगी मेरी,
सोचता हूँ क्या स्वार्थी होना अच्छा है या फिर निस्वार्थी..!!

सोचता हूँ क्या खुश रहूँ खुद में या दूँ सबको खुशी,
क्या अपनाऊँ खुदगर्ज़ी या निभाऊँ दोस्ती।

खुद को भी थोड़ी तवज्जो दूँ या सबकी परवाह करूँ,
हर किसी की फिक्र में डूबा रहूँ या खुद से भी मोहब्बत करूँ।

फैसला करना मुश्किल है इस जिंदगी के सफर में,
क्या अपनाऊँ स्वार्थीपन या जीऊँ दूसरों के असर में।

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