...

4 Reads

हमने तो तुम्हारे लिए रब से तुमहारी ही ख़ुशी मांगी थी
अपने लिए कुछ नहीं माँगा था...
और तुम्हें तुम्हारी आज़ादी मुझसे अधिक प्रिय थी...
तुमहारी आज़ादी तुमहारी ख़ुशी थी...
देखा मैंने...
जहां आपको कोई रोकने टोकने वाला ना हो
आप जो मर्ज़ी आए करे अपनी मर्जी से चले...
यही आपकी ख़ुशी थी।...
देखा मैंने...
क्योंकि दो व्यक्ति जब साथ आते हैं...
आप अपनी मर्ज़ी से जैसे तैसे नहीं चल सकते हैं..
आपको सामने वाले के भी मान सम्मान, ज़रूरतों, चाहतों और पसंद ना पसंद का खयाल रखना पड़ता हैं...
पैसे से ही सब नहीं होता...
और इतना सा करने के लिए कहा कोंनसे पैसे लगतें हैं,
या अलग से वक़्त निकालना पड़ता हैं या ऊर्जा देनी पड़ती हैं
आज कल debate चल रहा हैं दुनियाँ में के पैसा ही सबकुछ हैं... इससे सबकुछ ख़रीदा जा सकता हैं
पैसा बहुत कुछ हैं किंतु सबकुछ कतई नहीं...
पैसे से ये उपरोक्त सारी understanding कहां से लाएगा व्यक्ति,
किसी के लिए प्यार कहां से खरीद के लाएगा व्यक्ति..
निसंदेह पैसा जीवन की ज़रूरत हैं जीवन को सहज़ कर देता हैं...
लेकिन पैसे से ना व्यक्ति ख़ुद के लिए समझदारी ख़रीद सकता हैं ना किसी के लिए प्यार...
क्योंकि जगत की जो अमूल्य चीज़ें हैं..
वे पैसे से नहीं बिकती...
ना ही करोड़ो की कीमत से भी उसे ख़रीदा जा सकता हैं।

19.4.2024
#diary