26 Reads
काश कुछ बंदिश न होती इश्क करने के लिए
पर सज़ा तय होती वादों से मुकरने के लिए
आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए
कुछ नहीं अब पास मेरे तुझसे डरने के लिए
अपने ऊपर ले लिए तक़दीर के सारे सितम
रूह ने छोड़ा कभी न जिस्म मरने के लिए
सामने थे अब तलक लेकिन कभी समझे नहीं
कुछ हुनर तो चाहिए दिल में उतरने के लिए
इश्क की खुशबू छुपा रक्खी थी जो भीतर कहीं
छोड़ दी हमने फ़ज़ाओं में बिखरने के लिए
ख़त्म कर ढुल मुल रवैया ज़िंदगी की तर्फ़ तू
एक ज़िद तो चाहिए कुछ कर गुज़रने के लिए
न 'शशि' हैरान हो शोलों पे जलता देख कर
ख़ुद ही कूदे आग में हम तो निखरने के लिए
दूर न जाओ कहीं ये इल्तिज़ा करती 'शशि'
आईना भी चाहिए हम को संवरने के लिए
"आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए"
ये मिसरा 'शहरयार जी' का है जिसे लेकर ये ग़ज़ल कहने की कोशिश की है....
#ghazal 13
#shashiseesnsays
#shayari