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" मुंह की मौनता को शांति नहीं कह सकते
और मन की अशांति को वह ध्यान नहीं -
जिससे वह यात्रा ही सम्भव है
जिसे तुम अपने मन मंदिर ऐ मंजिल
पा सकते हो और न ही उसे तुम
वह सच्चा शांति कह सकते हो फ़किरो
आनंद का जैसे कोई विपरीत शब्द ही
कभी कोई नहीं बना है !
एक ऐसा विवाह होता है सुना है फ़रिश्तों
जहां तलाक़ कभी भी न होता है !
वह शांति ; शायद
इसे ही, कहते - हैं ! "