58 Reads
आ जाओ गर तुम
मिलने निकाल वक़्त
ख़ाकसार से,
तो छुपे पन्ने दराज़-ए-दिल
से, मैं भी निकाल लाऊ..
कि हुई होंगी कुछ खताए
हमसे भी, बचपने में..
उनपर थोड़ी तुमसे मैं
दिल्लगी करलू...
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आ जाओ गर तुम
मिलने निकाल वक़्त
ख़ाकसार से,
तो छुपे पन्ने दराज़-ए-दिल
से, मैं भी निकाल लाऊ..
कि हुई होंगी कुछ खताए
हमसे भी, बचपने में..
उनपर थोड़ी तुमसे मैं
दिल्लगी करलू...