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आ जाओ गर तुम मिलने निकाल वक़्त ख़ाकसार से, तो छुपे पन्ने दराज़-ए-दिल से, मैं भी निकाल लाऊ.. कि हुई होंगी कुछ खताए हमसे भी, बचपने में.. उनपर थोड़ी तुमसे मैं दिल्लगी करलू...
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