...

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दृष्टीकोन
सृष्टि का भी खेल देखो,
दृष्टी पर भले धुवा हो,
चष्मे पहने तो वो भी
खुल जाएगी तरीके से....|

पर दृष्टिकोन पर खुद
धूल जम जाए गर,
देखा अनदेखा सब
विफल हो जाएगा...|

जो सब देखने के बावजूद
बेवजह बहस क्यु करनी कहकर,
द्रष्टा भी अपनी दृष्टी फेरकर
देखी को भी अनदेखी कर देखा......|
© PradnyaBhide