...

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यही तो प्रेम है
शायरियों मे वार्तालाप को
ध्यान से जरा सुनिए
फिर अपने अपने प्यार को
इसी तरह समझीए,
वैसे तो आजतक कोई शायर नही बना
जब इश्क़ की खेती किया तो
लफ्ज़ उग गये
फिर एहसासों के पत्ते बने
और जज्बातो की निकली कलियाँ
उमंगों की खाद पडी
फिर लहलहा उठी बगिया
दो दिलो की दास्ताँ को मै
पेश कर रहा हूँ
आपसे आलोचना की
दरखास्त कर रहा हूँ
दीवाने ने कहा...
कहाँ हो तुम कि तुम्हारी याद बहुत आइ है
लहू मे कतरा बन रग रग मेरे समाई है
मेरे हाथ तेरे स्पर्श को बहुत तरसते है
तन्हाई दर्द बनके आंखो मे मेरे पिघलते है
तुम्हे कुछ अंदाज भी है
जरा भी मेरी कराह का
तुम्हे खयाल भी है जरा मेरे खयाल का...
महबूब नजाकत से बोली..
आंखों के राज सनम आंखो मे रहने दो
दिल मे उतर गये तो बहुत बवाल करेगे...
इश्क़ चुप न बैठा ...