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किताब
समेटती अल्फाज कितने,भावो को ये सहेजे
उल्फते इनायत भी है,नजाकत कही निगारत लिए
तौहीन का हुनर भी मीठा,कह गयी कभी शब्द तीखा
लहजो के बेशुमार किस्से,अनुचित उचित का ध्यान इसमे
कायदो कानून का ठेका,है लगता इनसे ही चलता
अनगिनत अलंकार लेकर, है सुशोभित इसकी गलिया
रोचक, कभी उदास सी,धूमिल कही स्पष्ट कृतियां
आलोचक तो कही व्यंग्य धारण, लेती कितने बाण तीखे
मरहमो का बक्सा लेकर, चल रही गाड़ी कही
पुरातत्व का काम आधा,प्रति क्षण इनसे सम्भलता
रोचक कथा ,किस्सो को लेकर ,रंग बिरंगे परिधान पहने
हास्य के रस को पीकर ,खिलखिलाहट मन मे भर दे
मौन रहना फितरत मे इनकी ,देखने से ही हल ये दे दे
हर सफर मे राही बनकर ,बिन कहे एकांत काटे
धोखे की उम्मीद न ही,न ही इनके पैर चलते
निर्जीव होकर सजीव लगती, पर किसी से कुछ न मांगे
बड़े बड़े ज्ञान लेकर ,है अहम न फिर भी इसमे
चरित्र का व्याख्यान देती,पर किसी को खुद न लेती
हर युग को इसने देखा,हर पीड़ा भी इसमे लिपटी
देव मनुज से रचना इनकी, किन्तु बेहतर जन जगत से।
(किताब)