...

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बीज कर्म के
कोई भी‌ रिश्ता साथ न दे ,
जब डसें कर्म के विषधर ।
धन, दौलत, वैभव पड़ा रहे,
पर मिले न दूजा अवसर।।
पीड़ा के प्याले पीने को,
मजबूर मनुज तब होता।
प्रतिफल वैसा मिलता जैसा,
भी बीज कर्म का बोता।
बीज कर्म के खुद बोते।
जब फल मिलता तब रोते।
© अlpu



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