...

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कुरुप
हे! सनातन तुम हो धनी,
ये रुप-रंग जैसे हो मणी।
तुम हो सुन्दर रुप,
मैं हूँ अत्यंत कुरुप।
आप हो सुरम्य के राजा,
जैसे सुगंधित पुष्प ताजा।
हे! नाथ गढ़ा मुझे क्यों बासी,
है खिचड़ी बनाते खलक के वासी।
गुण नहीं मुख का ही बखान है,
राम! इससे कुरुप परेशान है।
© ParwatSonal